*भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर राधा अष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है।*
*राधा अष्टमी कल है यानी 26 तारीख*
*मथुरा के पास रावल गांव जो राधा का जन्म स्थान माना जाता है, जहां 5 हजार साल पहले यमुना बहती थी। माना जाता है कि राधा-कृष्ण यहीं पर बैठकर यमुना को देखते थे। यहां आज भी राधा का मंदिर है, रावल गांव में अभी भी एक बगीचा है,जिसका नाम राधा-कृष्ण बगीचा है। यहां दो पेड़ हैं। एक श्वेत है और दूसरा श्याम रंग का। जिसे लोग आज भी कृष्ण और राधा का प्रतीक मानकर पूजा करते हैं।*
*कृष्ण और राधा को लेकर भी शास्त्रों में अलग अलग मत हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 48 के अनुसार राधा कृष्ण की पत्नी थीं, जिनका गंधर्व विवाह ब्रह्मा ने करवाया। इसी पुराण के प्रकृति खंड अध्याय 49 श्लोक 35, 36, 37, 40, 47 के अनुसार राधा श्रीकृष्ण--की मामी थीं, क्योंकि उनका विवाह कृष्ण की माता यशोदा के भाई रायाण के साथ हुआ था।*
*शास्त्रों के अनुसार इस दिन बहुत से लोग दोपहर 12 बजे तक व्रत करते हैं तो कई लोग पूरा दिन कृष्ण जन्माष्टमी की तरह ही व्रत का पालन करते हैं। राधा जी के जन्म को लेकर बहुत 2 कथाएं प्रचलित हैं तो आज हम आपको उनके जन्म से जुड़ी कथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे।*
*धार्मिक कथाओं के अनुसार मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट रावल गांव में वृषभानु एवं कीर्ति की पुत्री के रूप में राधा रानी ने जन्म लिया था। राधा रानी के जन्म के बारे में यह कहा जाता है कि राधा जी माता के गर्भ से पैदा नहीं हुई थी उनकी माता ने अपने गर्भ में वायु को धारण कर रखा था,उन्होंने योग माया कि प्रेरणा से वायु को ही जन्म दिया। परन्तु वहां स्वेच्छा से श्री राधा प्रकट हो गई। श्री राधा रानी जी कलिंदजा कूलवर्ती निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में अवतीर्ण हुई उस समय भाद्र पद का महीना था, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल 12 बजे और सोमवार का दिन था। उस समय राधा जी के जन्म पर नदियों का जल पवित्र हो गया सम्पूर्ण दिशाएं प्रसन्न निर्मल हो उठी और इनके जन्म के साथ ही इस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा। वृषभानु और कीर्ति ने बड़ा सुंदर उत्सव मनाया और अपनी पुत्री के कल्याण की कामना से आनंददायिनी दो लाख उत्तम गौए ब्राह्मणों को दान में दी।*
*कई जगह शास्त्रों के अनुसार यह भी माना जाता है कि कीर्ति जी जो राधा की मां थी, उन्होंने यमुना में स्नान करते हुए रोजाना मन्नत मांगती थीं कि उन्हें एक बेटी हो। एक दिन पूजा करते समय यमुना जी से कमल का फूल निकला, जो सोने सा चमक रहा था, पास आकर देखा तो कमल का फूल खिल गया। इसमें एक छोटी बच्ची थी, जिसकी आंखें बंद थीं। जब तक भगवान कृष्ण के दर्शन नहीं हुए उन्होंने आंखें बंद रखीं।*
*लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आंखे नहीं खोली है। इस बात से उनके माता-पिता बहुत दुःखी रहते थे।*
*राधा के पहली बार आंखे खोलने को लेकर शास्त्रों का मानना है कि, जब गोकुल में, नंदबाबा ने कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया उसके कुछ दिन बाद एक दिन जब यशोदा जी श्री कृष्ण के साथ गोकुल से वृषभानु और कीर्तिदा के घर आती हैं। तब वृषभानु जी और कीर्ति जी उनका स्वागत करती है यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए राधा जी के पास आती है। जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है। तब राधा जी पहली बार अपनी आंखे खोलती है। अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए, वे एक टक कृष्ण जी को देखती है, अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते है।*
*जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओं के लिए भी दुर्लभ है तत्वज्ञ मनुष्य सैकड़ो जन्मों तक तप करने पर भी जिनकी झांकी नहीं पाते, वे ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के यहां साकार रूप से प्रकट हुई।*
*माना जाता है कि राधा रानी जी श्रीकृष्ण जी से साडे़ ग्यारह माह बडी थीं।*
*पद्मपुराण में भी एक कथा मिलती है कि श्री वृषभानुजी यज्ञ भूमि साफ कर रहे थे, तो उन्हें भूमि कन्या रूप में श्रीराधा प्राप्त हुई। यह भी माना जाता है कि विष्णु के अवतार के साथ अन्य देवताओं ने भी अवतार लिया, वैकुण्ठ में स्थित लक्ष्मीजी राधा रूप में अवतरित हुई। कथा कुछ भी हो, कारण कुछ भी हो राधा बिना तो कृष्ण हैं ही नहीं। राधा का उल्टा होता है धारा, धारा का अर्थ है करंट, यानि जीवन शक्ति। भागवत की जीवन शक्ति राधा है। कृष्ण देह है, तो श्रीराधा आत्मा। कृष्ण शब्द है, तो राधा अर्थ। कृष्ण गीत है, तो राधा संगीत। कृष्ण वंशी है, तो राधा स्वर। भगवान् ने अपनी समस्त संचारी शक्ति राधा में समाहित की है। इसलिए कहते हैं-*
*जहां कृष्ण राधा तहां जहं राधा तहं कृष्ण।*
*न्यारे निमिष न होत कहु समुझि करहु यह प्रश्न।।*
*इस तरह सुंदर राधा जी के जन्मोत्सव की कथा है। जो हमारी किशोरी जी के यश का गान किया जाता है उस पर भगवान श्री कृष्ण साक्षात कृपा करते है और जो इनके प्रेम में डूबा रहता है वो सदैव ही निकुंज वास का अधिकारी बन जाता है।*
radhe radhe ji